आज के दिन षुरू हुई थी अगस्त क्रांति
आज के दिन षुरू हुई थी अगस्त क्रांति
आज के दिन षुरू हुई थी अगस्त क्रांति
हमारा देष गुलामी की जंजीरांे से जकडा हुआ था; अंग्रेज हम पर हुकूमत कर रहे थे; देषवासियांे का खून खौल रहा था; देष को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए मर मिटने को तैयार थे; इसी बीच महात्मा गांधी ने अगस्त क्रांति की अलख जगाई ; करो और मरो का नारा देकर क्रांतिकारियांे में जोष भरने का काम किया; अगस्त क्रांति की जब भी बात करें तो हमारे यहां के क्रांतिकारियों का नाम लिए बिना इतिहास पूरा नही हो सकता; जी हां, हम बात कर रहे हैं लाल पदमधर सिंह की जिनका नाम सुनहरे अक्षरांे और इतिहास के पन्नों में दर्ज है; युवा क्रांति के नायक लालपदमधर सिंह डॉक्टर बन कर लोगों की सेवा करना चाह रहे थे लेकिन जब देष के आन बान षान की बात आई तो उन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर करने की सोची;
आजादी के जंग की बात हो और इलाहाबाद का नाम लिए बिना इतिहास अधूरा रह जाएगा। आजादी की जंग में कई ऐसे नाम है जिनका इतिहास हमें गौरव और सम्मान की अनुभूति कराता है। लेकिन कुछ ऐसे भी नाम शामिल है जिनके साथ इतिहास ने न्याय नहीं किया। उनमें से लाल पद्यधर सिंह का नाम प्रमुख रूप से लिया जाना चाहिए; ं लाल पद्मधर सिंह का नाम सुनहरे अक्षरों और इतिहास के पन्नों में दर्ज होगा। बता दें कि विंध्य के लाल पदृमधर को गोरांे ने गोलियों से भून दिया था;,इलाहाबाद में दर्ज है क्रांति के इस नायक की गाथा;
सतना जिले के कृपालपुर नामक गांव में जन्मे लाल पद्मधर सिंह बघेल डॉ. बनकर जनता की सेवा करना चाहते थे। मगर, वह इस प्रयास में सफल नहीं हुए। उन्होंने बीएससी के लिए प्रयाग विश्वविद्यालय इलाहाबाद में दाखिला लिया। 12 अगस्त 1942 को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र लाल पद्मधर सिंह अंग्रेजों की गोली का सामना करते हुए शहीद हो गए थे। उनकी शहादत की दास्तान इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कोने-कोने से लेकर यहां के रहने वाले लोगों के जेहन में हर 12 अगस्त को जीवंत हो उठती है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ भवन परिसर में शहीद लाल पद्मधर की मूर्ति स्थापित है, जो खुद ही उनकी शहादत और आजादी की दास्तान सुनाती हैं।
आपको बता दें कि 1942 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में महात्मा गांधी ने 8...9 अगस्त की रात में अंग्रेजों भारत छोड़ो का आह्नान मुंबई में किया। करो या मरो का नारा दिया। महात्मा गांधी के आह्नान पर 12 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने मुंबई से भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा कर दी थी। मुंबई दिल्ली, पटना वाराणसी और फिर इलाहाबाद तक आंदोलन चिंगारी पहुंच चुकी थी अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद हो रहा था। गांधी जी की अगुवाई में देशभर के युवा बढ़-चढ़कर के हिस्सा ले रहे थे। उस आंदोलन में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के युवाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इलाहाबाद में आंदोलन की शुरुआत 11 अगस्त को हुई। अंग्रेजो के खिलाफ शहर भर में जुलूस निकाले गए और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन हुए जिसमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने मुख्य भूमिका निभाई।
ललकारते हुए कहा कि गोली मेरे सीने पर चलाओ
12 अगस्त को विश्वविद्यालय के छात्रों ने कलेक्ट्रेट को अंग्रेजों से मुक्त कराने और तिरंगा फहराने की योजना बनाई लेकिन इसकी भनक अंग्रेजी हुकूमत को लगते ही कलेक्ट्रेट तक आने वाले रास्ते पर पुलिस तैनात कर दी गई। 12 अगस्त को 11 बजे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन से छात्र छात्राओं का जुलूस तिरंगा लेकर कलेक्ट्रेट के लिए रवाना हुए। इसका नेतृत्व इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्राएं कर रही थी। ब्रिटिश सैनिकों ने भीड़ को रोक लिया और वापस जाने की चेतावनी देते हुए छात्राओं पर बंदूक तान दी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र छात्राएं वापस नहीं लौटी तो फिरंगी फौज ने हवाई फायरिंग कर दी। इससे भगदड़ मच गई। इस भीड़ में शामिल नौजवान लाल पद्मधर सिंह ने सामने आकर सिपाहियों को चुनौती दी लड़कियों पर क्यों गोरी तन रहे हो मेरे सीने पर गोली चलाओ। इसके बाद लाल पद्मधर सिंह तिरंगा हाथ में लेकर कलेक्ट्रेट की ओर बढ़े ही थे कि अंग्रेज सिपाही की गोली से उन्हें छलनी कर दिया। लेकिन लाल पदमधर सिंह अपने हाथ से तिरंगे को गिरने नहीं दिया; आज ऐसे वीरों को याद करने का दिन है जिनके बदौलत हम सब को आजादी मिली; इसके लिए न जाने कितने क्रांतिकारियों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये; न जाने कितनों को फंासी दे दी गई;
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