केवल नागपंचमी के दिन खुलता है ये मंदिर, जानिये नेपाल से लाई गई थी मूर्ति
केवल नागपंचमी के दिन खुलता है ये मंदिर, जानिये नेपाल से लाई गई थी मूर्ति
केवल नागपंचमी के दिन खुलता है ये मंदिर, जानिये
नेपाल से लाई गई थी मूर्ति
एक ऐसा मंदिर जो साल भर में केवल एक बार खुलता है; मंदिर खुलने के बाद उस मंदिर में विराजे नाग देवता की पूरे विधि विधान से पूजा होती है; इसे देष भर में अनोखे मंदिर के रूप में जाना जाता है जहां नाग पंचमी के दिन भगवान षिव के आभूशण नाग देवता की पूजा की जाती है; जी हां हम बात कर रहे हैं महाकाल की नगरी उज्जैन को मंदिरों का षहर कहा जाता है; इस षहर की हर गली में मंदिर है लेकिन नागचंद्रेष्वर मंदिर की आभा बेहद निराली है; मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसके कपाट केवल नाग पंचमी के दिन ही खुलते हैं;
नाग देवता का अनोखा मंदिर साल में खुलता है;
बता दें कि सावन मास के शुक्ल पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस बार यह 9 अगस्त को मनाया जा रहा है। इस दिन उज्जैन स्थित चंद्रेष्वर मंदिर का कपाट खोला गया है; जहां सुबह से ही पूजा अर्चना षुरू हो गई;
षास़्त्रों के मुताबिक सनातन धर्म में सर्प को पूजनीय माना गया है। नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है और उन्हें गाय के दूध से स्नान कराया जाता है। माना जाता है कि जो लोग नाग पंचमी के दिन नाग देवता के साथ ही भगवान शिव की पूजा और रुद्राभिषेक करते हैं, उनके जीवन से कालसर्प दोष खत्म हो जाता है। साथ ही राहू और केतु की अशुभता भी दूर होती है; बताते हैं कि भगवान नागचंद्रेश्वर की मूर्ति काफी पुरानी है और इसे नेपाल से लाया गया था। नागचंद्रेश्वर मंदिर में जो अद्भुत प्रतिमा विराजमान है, उसके बारे में कहा जाता है कि वह 11वीं शताब्दी की है। इस प्रतिमा में शिव-पार्वती अपने पूरे परिवार के साथ आसन पर बैठे हुए हैं और उनके ऊपर सांप फन फैलाकर बैठा हुआ है। उज्जैन के अलावा कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। यह दुनिया भर का एकमात्र मंदिर है जिसमें भगवान शिव अपने परिवार के साथ सांपों की शैया पर विराजमान हैं।
त्रिकाल पूजा की है परंपरा
मान्यताओं के अनुसार भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की परंपरा है। त्रिकाल पूजा का मतलब तीन अलग-अलग समय पर पूजा। पहली पूजा मध्यरात्रि में महानिर्वाणी होती है, दूसरी पूजा नागपंचमी के दिन दोपहर में शासन द्वारा की जाती है और तीसरी पूजा नागपंचमी की शाम को भगवान महाकाल की पूजा के बाद मंदिर समिति करती है। इसके बाद रात 12 बजे फिर से एक वर्ष के लिए कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
ये भी है मान्यता
मान्यताओं के अनुसार सांपों के राजा तक्षक ने भगवान शिव को मनाने के लिए तपस्या की थी, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हुए और सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया।
वरदान के बाद से राजा तक्षक ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही इच्छा थी कि उनके एकांत में विघ्न न हो, इसलिए यही प्रथा चलती आ रही है कि केवल नागपंचमी के दिन ही उनके दर्शन होते हैं, बाकी समय पर परा के अनुसार मंदिर बंद रहता है।
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