कपिल देव की 175 रनों की पारी ने रखी थी विश्व कप में भारत की जीत की नींव
1983 के विश्व कप तक सारे मैच 60 ओवर के हुआ करते थे.
हर गेंदबाज़ को अधिकतम 12 ओवर फेंकने के लिए दिए जाते थे. तब तक सफ़ेद गेंद का इस्तेमाल शुरू नहीं हुआ था.
गेंद लाल रंग की होती थी और एक गेंद का इस्तेमाल पूरी पारी के लिए होता था. न ही कोई इनर सर्किल होता था और न ही फ़ील्ड प्लेसिंग पर कोई रोकटोक.
सभी खिलाड़ी सफ़ेद कपड़े पहनते थे और टेस्ट मैच की तरह लंच और चाय का समय निर्धारित होता था.
डीआरएस का नाम भी तब तक क्रिकेट प्रेमियों ने नहीं सुना था. 1983 के विश्व कप के पहले मैच में जब भारत ने वेस्ट इंडीज़ को हराया, तो लगा कि दो महीने पहले बरबीस में वेस्ट इंडीज़ पर उनकी जीत कोई तुक्का नहीं थी.
इससे पहले विश्व कप में वेस्ट इंडीज़ की टीम को किसी टीम ने नहीं हराया था. भारत ने निर्धारित 60 ओवरों में 8 विकेट पर 262 रन बनाए थे और वेस्ट इंडीज़ की पूरी टीम को 228 रनों पर आउट कर दिया था.
ज़िम्बॉवे के ख़िलाफ़ अगला मैच जीतने में भारत को थोड़ी मशक्कत ज़रूर करनी पड़ी थी, लेकिन वो ये मैच भी पाँच विकेट से जीतने में सफल रहे थे.
लेकिन इसके बाद के दो मैच भारत आस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज़ से बड़े अंतर से हार गया.
जब कपिल देव की टीम ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ अपना पाँचवाँ मैच खेलने केंट के शहर टनब्रिज वेल्स पहुँची, तो वो जीत के बारे में कम अपना रन रेट सुधारने के बारे में ज़्यादा सोच रहे थे.
कपिल देव अपनी आत्मकथा ‘स्ट्रेट फ़्रॉम द हार्ट’ में लिखते हैं, "चूँकि आस्ट्रेलिया की टीम अंकों में हमारे बराबर आ गई थी और उनका रन रेट हमसे बेहतर था, इसलिए हमारा पूरा ज़ोर अपना रन रेट सुधारने पर था. वक़्त का तकाज़ा था कि हम पहले बैटिंग करें और 300 से अधिक रन बनाएँ.''
''मेरा ध्यान इस तरफ़ गया भी नहीं कि पिच में काफ़ी नमी थी और उस पर पहले बैटिंग करना मुसीबतों को दावत देना था. मैंने बैटिंग के अलावा किसी दूसरे विकल्प पर गंभीरता से विचार ही नहीं किया. शुरू में गेंदबाज़ों को काफ़ी मूवमेंट मिल रहा था. नतीजा ये रहा कि हमारे दोनों ओपनर बिना कोई ख़ास योगदान किए पवेलियन वापस लौट आए."
सबसे पहले गावस्कर पहले ही ओवर की आख़िरी गेंद पर आउट हुए.
सबने अपनी उम्मीदें फ़ॉर्म में चल रहे मोहिंदर अमरनाथ पर लगाईं, लेकिन वो भी पाँचवें ओवर में विकेट के पीछे लपक लिए गए. स्कोर था 6 रन पर 2 विकेट.
जब संदीप पाटिल बैंटिंग करने आए, तो स्टेडियम में सन्नाटा छा चुका था. इस बीच श्रीकांत ने डीप मिड ऑफ़ पर एक आसान कैच दे दिया.
कुछ गेंदों बाद संदीप पाटिल भी विकेटकीपर के हाथों कैच कर लिए गए.
संदीप पाटिल अपनी आत्मकथा ‘सैंडी स्टॉर्म’ में लिखते हैं, "कपिल ने सोचा कि शायद उनकी बारी देर से आएगी इसलिए वो नहाने चले गए. लेकिन हमारे खिलाड़ी इतनी जल्दी जल्दी आउट हुए कि मैंने अपने आप को यशपाल शर्मा के साथ क्रीज़ पर पाया. 12वें खिलाड़ी सुनील वाल्सन दौड़ कर हमारे पास क्रीज़ पर आकर बोले कि कपिल अभी भी वॉशरूम में हैं. अगली बारी उन्हीं की थी.''
''लेकिन वाल्सन की चेतावनी का कोई ख़ास असर नहीं हुआ और मैं भी पीटर रॉसन की केंद को फ़्लिक करने के चक्कर में विकेट के पीछे कैच दे बैठा. हमारे 5 विकेट सिर्फ़ 17 रनों पर गिर चुके थे. ड्रेसिंग रूम में दूसरे खिलाड़ियों ने जल्दी-जल्दी कपिल को बैटिंग के लिए तैयार किया.''
''जब मैंने उन्हें मैदान में क्रॉस किया तो मैं बुरी तरह हिला हुआ था और पहली बार मैंने उनसे जानबूझ कर अपनी आँखों का संपर्क नहीं किया. जब मैं ड्रेसिंग रूम में घुसा, तो मैंने देखा कि वहाँ गावस्कर, श्रीकांत, मोहिंदर अमरनाथ और यशपाल शर्मा कोने में मुँह लटकाए बैठे हुए थे. हम में इतनी हिम्मत नहीं थी कि हम बाहर जाकर मैच देखते."
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