एपीएसयू रीवा के 72 स्थाई कर्मियों के चिकित्सा भत्ते में आडिट का पेंच
आडिट कर्मियों को मिल रही धमकियां
वेतन के नाम पर ले रहे मोटी रकम, अब चिकित्सा भत्ता के लिए लगा रहे जुगत
रीवा।
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा के 72 स्थाई कर्मचारियों की टकटकी चिकित्सा भत्ता पर लगी हुई है। चिकित्सा भत्ता के लिये विवि. कार्यपरिषद वर्ष 2023 में ही हरी झंडी दे चुकी है लेकिन प्रकरण में आडिट का पेंच आ जाने से संबंधित मामला आसमान से गिरकर खजूर में अटक गया है। गौरतलब है कि बीते सत्र में विश्वविद्यालय रीवा के 72 कर्मचारियों को स्थायी किया गया था। कर्मचारी संगठनों की लंबी लड़ाई के उपरांत विवि. रीवा के दिहाड़ी एवं मस्टर कर्मियों को स्थायी किया जा सका है। विश्वविद्यालयीन कर्मचारी संगठनों की मांग पर इन 72 स्थायी कर्मियों को चिकित्सा भत्ता दिये जाने की स्वीकृति विवि. कार्यपरिषद द्वारा दी गई थी। अगस्त 2023 में बुलाई गई कार्यपरिषद की बैठक में प्रतिमाह 2 हजार रुपये चिकित्सा भत्ता प्रदाय किये जाने की स्वीकृति प्रदान की गई थी।
लेकिन चिकित्सा भत्ता का मामला जब कार्य परिषद की मुहर लगने के बाद स्थानीय संपरीक्षा की नजरों के सामने पहुंचा तो उसमें यह कहते हुये आडिट आपत्ति लगा दी गई कि मामला शासन से स्वीकृत नहीं है तथा चिकित्सा भत्ता के रूप में विवि. रीवा पर अतिरिक्त वित्तीय भार आयेगा। यद्यपि अनेक विभागों में कर्मचारियों को चिकित्सा भत्ता का लाभ दिया जा रहा है। विवि. रीवा के ही लोग बताते हैं कि यहां के अलावा कई विश्वविद्यालय अपने स्थाई कर्मियों को चिकित्सा भत्ता प्रदाय कर रहे हैं। यहां उल्लेखनीय पहलू है कि जब विश्वविद्यालय प्रशासन के पास शासन स्तर से सक्षम स्वीकृति प्राप्त नहीं थी तब कार्यपरिषद में प्रस्ताव किस आधार पर स्वीकृत करा लिया गया। यदि नियमानुसार कार्यवाही की गई होती तब शायद ही आडिट का पेंच फंसता?
कब तक करेंगे इंतजार
जानकारी अनुसार एपीएसयू रीवा में वर्ष 2007 से वर्ष 2012 तक के कार्यरत दैनिक वेतन भोगी व मस्टर कर्मचारियों को स्थायी कर्मी नियुक्त किया गया है। जिस प्रकार कर्मचारियों को महंगाई भत्ता एवं अन्य भत्तों का लाभ दिया जाता है उसी प्रकार शहरों के हिसाब से चिकित्सा भत्ते का भी प्रावधान है। विवि. रीवा के कर्मचारी फिलहाल इस लाभ से वंचित हैं। अब देखना है कि विवि. रीवा के स्थाई कर्मियों के चिकित्सा भत्ते की मांग कब तक में पूरी होती है? कारण कि जब तक शासन से स्वीकृति नहीं मिलेगी तब तक आडिट आपत्ति से पिंड छूटने वाला नहीं है।
आडिट करने वालो की मिल रही धमकियां
आडिट विभाग के सूत्रों की माने तो चिकित्सा भत्ता मिलने में आपत्ति करने के चलते विश्वविद्यालय के कर्मचारियों द्वारा आडिट करने वालो को धमकियां भी मिल रही है। जिसकी सूचना विभागीय अधिकारियों द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों से की गई है।
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